चूंकि हमारी देह परमेश्वर का मंदिर है, जिसे परमेश्वर ने अपने लहू से मोल लिया है, इसलिए हमें उन इस्राएलियों की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए जो शैतान द्वारा परीक्षा में पड़ गए थे और जंगल में अपनी यात्रा के अंत में व्यभिचार में लिप्त हो गए और एसाव की तरह जिन्होंने भूख के कारण अपना पहिलौठे का अधिकार बेच दिया था। हमें एक धर्मी जीवन जीना चाहिए जो परमेश्वर का अनुसरण करता है, न कि इस बुरे और व्यभिचारी दुनिया का।
जब दुनिया पाप और व्यभिचार से भरी है, तब परमेश्वर संसार का न्याय करते हैं। जिस तरह परमेश्वर ने नूह के दिनों में जल से, सदोम और अमोरा के दिनों में आग से दुष्ट पीढ़ी का न्याय किया, उसी तरह परमेश्वर ने नबियों के माध्यम से भविष्यवाणी की कि वह इस दुष्ट और व्यभिचारी पीढ़ी का न्याय आग से करेंगे और अपनी संतानों को पवित्र और ईश्वरीय जीवन जीना सिखाया।
इसी के कारण उस युग का जगत जल में डूब कर नष्ट हो गया। पर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिये रखे गए हैं कि जलाए जाएँ; और ये भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नष्ट होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे। . . . तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए, और परमेश्वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिये कैसा यत्न करना चाहिए, . . . 2 पतरस 3:6-12
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